सोच बदलो, जिंदगी बदलेगी ...


मै आपको छोटी सी कहानी सुनाता हूँ..........

1. )
   
      एक गांव में एक कुम्भकार रहता था और उसका काम क्या होता है ,
      मिट्टी को नए -नए आकार दे कर नए - नए मिटटी के सामान बनाना।
      तो वो कुम्भार मिटटी से कुछ बना रहा था उसके हाथ मिट्टी में लपे हुए थे,
      तभी उसकी पत्नी आयी और उसने पूछा कि ये क्या बना रहे है ?
      कुम्भार ने जवाब दिया "चिलम " बना रहा हूँ , फैशन चला है खूब बिकेगा।
      उसकी पत्नी ने कुम्भार से कहा "सुराही " क्यों नहीं बनाते गर्मी आने वाला है ये भी खूब बिकेगा।
      कुंभार ने सोचा बात तो सही कह रही है।
      तो अब कुम्भार ने मिट्टी दुबारा मिलाया और सुराही बनाना शुरू कर दिया।
      जैसे ही उसने सुराही का आकार देना शुरू किया ;
      मिट्टी में से आवाज आयी - 'ये क्या बना रहा है ? '
      कुम्भार ने कहा मन बदल गया है सुराही बना रहा हु।
      सुराही ने क्या कमाल जवाब दिया देखिएगा जरूर ;
      सुराही ने कहा -"तेरा तो विचार बदल गया मेरी तो जिंदगी ही बदल गई "
      चिलम बनती खुद भी जलती और दुसरो को भी जलती ,
      सुराही बनी हूँ खुद भी शीतल रहूंगी दुसरो को भी ठंडा रखूंगी। 
      मतलब साहब सोच बदलने से जिंदगी बदल जाती है।
      कुछ और उदाहरण है मेरे पास आप को बताता हूँ........
2. )आप लोगो ने अंगुलिमार का नाम तो सुना ही होगा।

      १००० लोगो को मारने का  शपथ लिया था जिसमे से ९९९ लोगो को मार चूका था।
      सारा गाँव उसके जंगल में जाने से डरता था, यहाँ तक की उसकी माँ भी उससे मिलने नहीं जाती थी कि
       अपनी शपथ के चक्कर में कहीं मुझे ही ना मार दे।
      उसके जंगल के रस्ते के सुरुआत में ही एक बोर्ड पर लिखा हुआ था "यहाँ जाना निषेध है ,यहाँ अंगुलिमार
      रहता है जिसने 1000 लोगो को मारने की शपथ ली थी जिसमे से 999 लोगो को मार चुका  है। "

एक बार महात्मा बुद्ध अपने एक शिष्य के साथ उसी मार्ग से जा रहे थे, तभी उनके शिष्य ने पूरी कहानी बताते
      हुए कहा कि हम इस मार्ग से नहीं जायेंगे।
      बुद्ध जी ने कहा मै इस मार्ग से जाने वाला नहीं था लेकिन अब इसी मार्ग से जाऊँगा अगर तुमको वापस जाना
      है तो तुम चले जाओ या तो मेरे साथ चलो।
      महात्मा और उनका शिष्य उसी मार्ग पे चले गए।
      दूर से अंगुलिमार ने जब दोनों लोगो को देखा तो उसको खुशी हुई की अब उसकी शपथ पूरी होगी।
      महात्मा आगे बढ़ते चले गए जब अंगुलिमार के पास पहुंचे तो अंगुलिमार ने कहा - आपको डर नहीं लगता है
      मै आपकी हत्या कर दूंगा आपको मार दूंगा।
      महात्मा बोले - तू मार मुझे मै तेरी ही इत्छा पूरी करने आया हूँ, मार दे मुझको।
      अंगुलिमार बोला - सन्यासी , तू रुक।
      महात्मा बोले - अरे मै तो 50 साल पहले रुक गया अब तू रुक।
      आप सोचिये अंगुलिमार के मन में महाभारत हो रहा  होगा कि इसे मारु कि ना मारु।
      अंगुलिमार बोला - डर नहीं लगता तुझे सन्यासी।
      इसी बीच महात्मा बोले मार दे लेकिन एक शर्त है।
      अंगुलिमार बोला - क्या शर्त है तेरी बोल ?
      वो बोले -इस पेड़ पे जो टहनी है इसे काट दे  पहले ।
      अंगुलिमार ने तुरंत हथियार फेका और टहनी काट दी।
      महात्मा सोचे - इस अवस्था में भी बात मान रहा है।
      बात बन सकती है ,इसे वापस ले जा सकते  है।
      सन्याशी ने बोला - काट तो दिया अब जोड़ कर दिखा।
      अंगुलिमार बोला - सन्याशी तू पागल  है क्या ? ये जुड़ नहीं सकता।
      सन्याशी बोले - काटना तो आसान है लेकिन जोड़ना बहुत ही कठिन है।
      तूने आज तक बहुत काटे अब जोड़ कर भी देख ले।
      इतना कहते ही सन्याशी वापस जाने लगे उनको पता था कि ये पीछे जरूर आयेगा।
   
      अब अंगुलिमार बुद्ध के पीछे पीछे पीछे चला गया और संन्यास ले लिया।
      यहाँ notice करने वाली बात ये है की यहाँ अंगुलिमार का विचार बदल गया और वहाँ उसकी जिंदगी बदल        गई।"

"दोस्तों विचार बदलने से जिंदगी बदलती है अगर आप भी अपनी बदलना चाहते है तो विचार बदलिए और कर्म के मार्ग पर बढ़ते रहिये आपको जल्द ही सफलता मिलेगी।"
धन्यवाद।

Comments